My Discover in me
Book Summary
In Hindi
Book Details
Book Title - My Discover in me
Book Part - 1 part
Book part Title - My Discover in me- stammer
Languages - Hindi , English (translate)
Hindi Book Title - मुझ में मेरी खोज- Stammer
Book category - life journey.
Writer - S. Upadhyay
My Discover in me - Stammer
About the Book
Ans- 'My Discover in me' या 'मुझ में मेरी खोज' नाम की किताब लेखक 'S upadhyay' के जीवन पर आधारित है। लेखक ने अपने जीवन में खुद के साथ घटी घटनाओ, अपने विचार, अपने फिलिंग, अपने अच्छाई, अपनी बुराई और संघर्ष मय जीवन को इस किताब में दर्शया है।
Q- ये किताब एक ही किताब है पर इसके 5 भाग क्यूँ है? कहीं ऐसा तो नही की एक ही किताब में 5 अलग अलग किताबे हो और क्या सभी भाग की कहानियां लेखक के जीवन पर आधारित है या हर भाग अलग अलग लोगो की है?
Ans- ये किताब पूरी तरह से सिर्फ लेखक के जीवन पर है, लेखक के जीवन में कुछ लोग आये जिन्होंने लेखक के साथ अच्छा या बुरा किया जिससे लेखक की जिंदगी बदल गयी, उन सभी लोगो ने लेखक के साथ जैसा किया बस उसको ही लेखक ने इस किताब में लिखा है। वो अपनी जिंदगी में कैसे भी हो अच्छे हो या बुरे हो मगर लेखक के जीवन में उनका क्या योगदान है लेखक ने बस उतना ही जिक्र किया है इस किताब में । बाकि ये किताब पूरी तरह से लेखक के जीवन पर आधारित है।
इस किताब में 5 भाग इसलिए है क्यूँ की लेखक ने अपने जीवन को 5 भागो में बाँट दिया है।
Q- 'My discover in me - stammer' किताब का ये भाग लेखक के जीवन के किस भाग को दर्शता है?
Ans - बचपन को दर्शाता है और किताब का ये भाग सबसे छोटा है।
Book summary
8 मई 1997 का दिन मेरे परिवार के लिए आम दिनों के मुकाबले कुछ अलग था परिवार में चहल पहल थी खुशियों का माहौल था । क्यूँ की मेरे परिवार में एक नया सदस्य जो आ गया था । यानि की इस दिन मेरा जन्म हुआ था। मैं अपने माता पिता हरिहर प्रसाद और उमा देवी की पांचवी संतान था और संयुक्त परिवार को जोड़कर देखा जाय तो परिवार का दसवाँ बच्चा । वैसे मेरे जन्म के कुछ साल बाद मेरे परिवार में 2 बच्चों ने और जन्म लिया जिसके बाद परिवार में मुझको ले कर हम कुल 12 भाई बहन हो गए जिनमे 7 लड़के और 5 लड़कियां थी खैर इस बारे में सारी बाते my discover in me - Born unlimited dreams में बिस्तार से है उसको आप आगे पढ़ेंगे । अभी हम मेरे जन्म के बाद की कहानी पर चलते है।
पंडित जी को बुलाया गया कुंडली बनाने के लिए । पंडित जी ने मेरा नाम हेमंत रखा पर मुझे एक और नाम मेरे चाचा से मिला नाम था 'सुशील,
कुंडली बनाने के बाद पंडित जी ने मेरे पिता जी को बताया कि ये लड़का बहुत बुद्धिमान होगा और दूर दर्शी होगा इसका दिमाग़ बहुत तेज होगा पर इसकी राशि में बहुत गड़बड़ है जिसकी वजह से जीवन में बहुत सी कठिनाईयां होगी और ये लड़का अक़्सर बीमार रहेगा जिसके कारण इसकी सेहत आम लोगो के मुक़ाबले अच्छी नही होगी इस लड़के के जीवन में बहुत संकट है लेकिन ये लड़का क़माल का होगा । वैसे ये सब अंधविस्वास मैं नही मानता पर ये सब सुन कर मेरे परिवार वाले ख़ुश भी हुए दुखी भी हुए लेकिन कर भी क्या सकते थे इसलिए सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया । आगे कुछ समय सब कुछ नॉर्मल था जैसा हर घर में बच्चे के जन्म के बाद होता है । कुछ समय बीता मैं डेढ़ साल से ज्यादा का हो गया तब मैंने बोलना सुरु किया सुरुआत में सब बच्चे ठीक से नही बोल पाते वैसा ही मेरे साथ भी हुआ। मैंने मुह खोला तो मेरे परिवार को मेरे भविष्य को लेकर चिंता होने नही, भविष्य में मेरे साथ हो अच्छा हो या बुरा हो पर मेरे बोलने के बाद से एक बात मेरी माँ और मेरा परिवार को पता चल चुका था की मैं हकलाता हूँ वैसे मैं अकेला नही था अपने परिवार में जो हकलाता था मेरे बड़े भाई से छोटे भैया भी हकलाते थे लेकिन तब वो बहुत कम हकलाते थे मैं बहुत ज्यादा हकलाता था इतना ज्यादा की एक भी शब्द मेरे मुह से ठीक से नही निकलता था और फिर इसी हकलाहट के साथ सुरु हुयी मेरे संघर्ष की कहानी।
हर माँ अपने बच्चे के जन्म के बाद बहुत खुश होती है लेकिन दूसरी बार तब वो सबसे ज्यादा खुश होती है जब बच्चा उसको माँ कहने लगता है। मैं अपनी मां को ये ख़ुशी नही दे पाया बल्कि मैंने जब भी मां कहने के लिए मुह खोला उन्हें मेरे भविष्य को लेकर चिंता हुयी। क्यूँ की मैं बहुत ज्यादा हकलाता था, मेरी मां मेरी ज़िन्दगी आगे कैसी होगी ये सोच कर चिन्तित होती थी। मेरे परिवार ने मेरा ईलाज भी करवाना चाहा लेकिन करते भी क्या इसका कोई ईलाज ही नही था , जिस डॉक्टर के पास मुझे लेकर जाते वो बस इतना कहकर छोड़ देता था की हो सकता है बड़े होने के बाद ये हकलाना बंद कर दे । मेरे परिवार के लिए डॉक्टरो के ये शब्द किसी वरदान से कम नही लगते थे क्यूँ की इसके बाद उनके मन में एक आशा की किरण दिखाई दे रही थी बड़े होने के बाद मेरे ठीक होने की लेकिन हर माता पिता अपने बच्चों को कष्ट में कैसे देख सकते है । इसीलिए मेरा परिवार मुझको भगवान की सरण में ले जाने लगा । इस आश में की ऊपर वाला सब कुछ सही कर सकता है दस बारह साल बाद जो होगा देखा जायेगा मगर हो सकता है भगवान के कृपया से हकलाना पहले ही ठीक हो जाये इसिलए मंदिर में दरगाहों में ले जाकर मन्नत करने लगे पर इस सब से कोई फायदा नही हुआ। बल्कि मेरी हकलाहट मेरे उम्र के साथ बढ़ती जा रही थी , घर में तो मुझे कोई प्रॉब्लम नही होती थी पर घर से बाहर निकलने के बाद मुझे परेशानिया झेलनी पड़ी। मेरी उम्र के सुरु के 5 6 साल क्या हुआ मुझे याद तो नही लेकिन उसके बाद की यादें भुलाये नही भूलती घर से बाहर निकलने के बाद लोग मुझे चिढ़ाते थे मेरी बातों को कॉपी करते थे मुझे हकलहा और न जाने क्या क्या बुलाते थे। तकलीफ होती थी सब सुन कर इसीलिये मैं ज्यादा तर अपने घर ही रहता था मोह्हले के सारे बच्चे साथ मिल कर खेलते थे मेरा भी मन करता था उनके साथ खेलने के लिए पर मैं उनके साथ नही खेलता था इस डर से कहीं कोई मेरा मज़ाक न बना दे कभी कभी जो खेलता भी था तो सब मुझे हरा देते थे मेरा मज़ाक भी उड़ाते थे और मुझे न तो हार मंजूर थी न मज़ाक के पात्र बनना, इस सब की वजह से मैं बचपन के सारे खेल कूद से दूर रहा । कहते है कि खेल कूद से शरीर स्वस्थ और मजबूत रहता है । शायद मेरे अस्वस्थ होने का ये भी एक कारण हो मैंने बचपन में खेल कूद नही की शायद इसीलिए मेरी बॉडी ठीक से विकास नही कर पायीं।
खैर जैसा भी मेरा बचपन था अच्छा था मुझे समझने वाला परिवार था मेरे ग़लतियों पर डांटने वाली मेरी माँ थी, मुझे समझने वाली मेरी मौसी जो मेरी बड़ी माँ भी थी जिनको मैं दुम्मा कह कर बुलाता था दुम्मा मतलब दूसरी माँ और ये नाम खुद मैंने ही बहुत छोटे उम्र में रखा था वो थी, मुझे घुमाने वाले मेरे भईया लोग थे, मेरी जिद को पूरा करने वाले मेरे चाचा थे, मेरी बहने भी थी और सबसे बड़ी बात मेरी नानी मेरे साथ थी । बस कोई दोस्त नही था मेरा इसकी वजह यही थी की लोग मुझे एक्सेप्ट नही करते थे और ज्यादा मैं घूमता भी नही था जिसकी वजह से कोई दोस्त ही नही बना। इसके आगे की कहानी आप को My Discover in me - Born unlimited Dreams में पढ़ने को मिलेगा। पर मैं इस सब के लिए भगवान को धन्यबाद देता हूं ।
धन्यबाद देता हूँ परमात्मा को उसने मुझे वो सब दिया जो लाखो लोगो को नही मिलता चलो मान लिया मेरी जबान में कुछ कमी है लेकिन ऐसे लाखो लोग है जिनकी ज़बान ही नही है। मैं हकलाता हूँ पर कम से कम बोलता तो हूँ कितने तो बोल भी नही पाते। मैं फिर से धन्यबाद देता हूँ भगवान को उसने मुझे ऐसा दिल और दिमाग दिया जो लोगो को समझता है उनकी मज़ाक नही उड़ाता,
धन्यबाद देता हूँ भारत में पैदा करने के लिए, धन्यबाद देता हूँ इस जीवन के लिए ।
धन्यबाद धन्यबाद धन्यबाद
किताब के इस भाग के अंत में मैं बस इतना कहना चाहूंगा
समाज हम सब से बनता है, हमारी सोच से बनता है, हमारे कर्म से बनता है, लोगो को जिन्दगी जीने की अच्छी दिशा देने के लिए बनता है, अच्छाई के लिए बनता है, लेकिन आज समाज की दशा ऐसी हो गयी है जिसमे लोगो की मान्सिक और शारीरिक कमियों को जैसे पाप माना है, किसी व्यक्ति में शारीरिक रूप से अगर कोई कमी है तो समाज उन्हें एक्सेप्ट नही करती, उनका मजाक उड़ाया जाता है, उपहास होता है, उनकी नकल होती है, चिढ़ाया जाता है।
आख़िर उनका गुनाह यही होता है न की वो अंधे होते है, लगड़े होते है, गूँगे होते है, बौने होते है, पागल होते है ।
बस यही सब गुनाह होता है उनका और यही गुनाह उन्हें जिंदगी भर मर मर जीने पर मजबूर कर देता है।
मेरे साथ भी समाज ऐसा ही था वही सब मेरे साथ भी किया जो वो करता आया है बुरा बर्ताव ,
मेरे पास 2 ऑप्शन थे पहला या तो मैं समाज के तानो को झेलकर रो रो कर जीना सीख लूँ, दूसरा या तो मैं अपने अनुसार इस समाज को ही बदल डालूं।
मुझे ऐसा समाज क़त्तई मंजूर नही था जिसमे लूले, लगडे, अंधे, गूँगे जैसे लोगो का उपहास हो उन्हें दरकिनार किया जाए । एक तो प्रकृति ने उनके साथ वैसे ही नाइंसाफी की है समाज में भी नाइंसाफी हो ये मुझे बर्दास्त नही।
इसीलिए मैंने दूसरा ऑप्शन चुना और खुद से ठान लिया की एक न एक दिन इस समाज को बदल डालूंगा।
समाप्त
S upadhyay
